किसी भी भाषा को सीखना हमे बहुत कठिन काम लगता है परंतु क्या आपने कभी ये सोचा है की जब आपने बोलना शुरू किया था, उस समय तक न तो आपने कोई स्कूल मे एड्मिशन लिया था और न ही कोई कोचिंग शुरू की थी। अब सवाल आता है कैसे?
यहाँ मैं हिन्दी और इंग्लिश दो भाषाओ को लेकर आप को समझने की कोशिश करता हू, जो लोग हिन्दी बोलने वाले है मैं उनसे कहना चाहता हू की जब आप को बिना स्कूल जाए हिन्दी बोलना आ सकता है तो इंग्लिश बोलना भी आ सकता है। जब आप बच्चे थे तब आप अपने आस-पास की चीज़ों को पहले समझने की कोशिश करते है, फिर उसे टूटा-फूटा बोलते है, और धीरे धीरे आप की समझ बढ़ती चली जाती है और आप एक पूरा वाक्य बोलने लगते है।मान लीजिये आप अभी भी छोटे बच्चे है, और आप को प्यास लगी है परंतु आप को अभी बोलना नहीं आता, तब आप अपनी बात को दूसरों तक या तो इसारो से समझयेंगे या उस एक शब्द (पानी) को बोल कर अपनी बात कह देंगे, जो कभी किसी ओर से आप ने सुना होगा। इस तरह आप रोजाना उस बात को बोलते है और हर बार आप उस वाक्य को सही बोलने की कोशिश करते है, और एक समय ऐसा भी आ जाता है जब की आप उस वाक्य को सही-सही और स्पष्ट बोलने लग जाते है। ऐसा इसलिए हो पाता है क्योकि आप जिस भाषा मे सोचते है, उसे समझते है, उसी भाषा मे आपको उसे बोलना होता है। इसलिए वह हमारी मात्रभाषा हो जाती है। फिर वो चाहे इंग्लिश हो, चाईनिश हो, फ्रेंच हो या अन्य कोई भाषा।
अब बारी जब अन्य कोई भाषा बोलने की या कहे हिन्दी से इंग्लिश बोलने की आती है तब ज्यादातर लोग यह गलती करते है । वे सभी सोचते हिन्दी मे, उसे समझते हिन्दी मे ओर फिर उसे अनुवाद करते है इंग्लिश मे, फिर उसे बोलते है। इसलिए ज्यादातर लोग धाराप्रवाह अंग्रेजी नहीं बोल पाते है। जब तक आप ये अनुवाद करना बंद नहीं करेंगे तब तक आप किसी भी भाषा मे परिपक्ता हासिल नहीं कर सकते। इसीलिए सोचो भी उसी भाषा मे जिसमे आपको बोलना है।
अब यदि आपको उस भाषा मे बात करने वाला नहीं मिलता है तब क्या करे?
ऐसी स्थिति मे आप को एक डायरी बनाना चाहिए जिसमे आप सिर्फ एक ही भाषा का उपयोग करे, जिसमे आप को सोचना भी उसी भाषा मे है, समझना भी उसी भाषा मे है और लिखना भी उसी भाषा मे है, फिर वह चाहे इंग्लिश हो या हिन्दी या अन्य कोई भाषा।SHARE ON:
Bilkul sahi salah
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