Thursday 23 April 2020

#30 Nadep & Warmi Compost ||सीखे जैविक खाद बनाने का आसान तरीका ||

जैविक खाद बनाने के लिए दो तरह की विधियो का ज्यादातर उपयोग किया जाता है :-

1) नाडेप विधि 
2) केचुआ खाद विधि 



नाडेप विधि


यदि आप को नाडेप विधि से जैविक खाद बनाना है तो नीचे दिये निर्देशों को अपनाए :-

माना जैविक खाद की आवश्यकता =3 टन

तो सबसे पहले आप को एक  टंकी   बनाने की आवश्यकता होगी । जिसकी लम्बाई x चौड़ाई x ऊचाई  निम्नानुसार रखे:-
लम्बाई =3 मीटर
चौड़ाई =3 मीटर
ऊचाई=1 मीटर

ध्यान रहे, टंकी मे हवा आने जाने के लिए छिद्र जरूर छोड़े और उसे तेज़ धूप और बारिश से बचाने के लिए छत जरूर बनाए ।



अब इस टंकी मे घर के रोजाना उपयोग मे आने वाले सब्जियों के अपशिष्ट, सूखे पत्ते, जानवरो का गोबर, और मिट्टी की एक परत बनाए, इन सभी की मात्रा निम्नानुसार रखे :-

सब्जियों के अपशिष्ट+सूखे पत्ते=45 किलोग्राम
जानवरो का गोबर=5 किलोग्राम
मिट्टी=50 किलोग्राम
पानी = 70 लिटर

इस तरह आप, इतनी ही मात्रा के एक के बाद एक 30 परत तक बना सकते है। जब यह टंकी पूरी तरह भर जाए तब इसे 100 से 120 दिन के लिए इसी तरह छोड़ दे जिससे मिट्टी की परतो द्वारा आवश्यक पोषक तत्व अवशोषित कर लिया जाए ।
ध्यान रहे, टंकी मे 20% नमी अवश्य बानए रखे, यदि नमी कम दिखे तो ऊपर से पानी का चिढ़काव  करे ।

इस तरह 120 दिन बाद आपको 17 तरह के पोषक तत्वो से उक्त जैविक खाद प्राप्त हो जाएगी जिसका उपयोग आप अपने खेतो और बगीचो मे करके अच्छी फसल तैयार कर सकते है ।

केचुआ खाद विधि

इस विधि मे चार चक्रीय केचुआ खाद विधि ज्यादा उपयोगी मनी जाती है । इस विधि मे भी आवश्यकता अनुसार एक टंकी का निर्माण किया जाता है जिसे अंदर से चार बराबर भागो मे विभाजित किया जाता है ।



ध्यान रहे, प्रत्येक भाग से दूसरे भाग मे केचुओ को जाने के लिए  दीवार मे छिद्रों द्वारा रास्ता दिया जाता है, और टंकी के ऊपरी हिस्से मे एक नाली बनाई जाती है जिसमे हमेशा पानी भरकर रखा जाता है जिससे  चिटियों
को टंकी मे जाने से रोका जा सके ।


इस विधि मे भी सबसे पहले टंकी मे घर के रोजाना उपयोग मे आने वाले सब्जियों के अपशिष्ट, सूखे पत्ते, फूल माला, जानवरो का गोबर, और मिट्टी डाली जाती है,  उसके बाद जब यह आदा सड़ जाता है तब इसमे 1000 केचुओ को टंकी मे छोड़ दिया जाता है, केचुओ को अंधेरा पसंद होता है इसलिए ऊपर से जूट की बोरिओ से इसे ढ़क दिया जाता है,




सड़े हुये अपशिष्ट इन केचुओ का भोजन होता है, प्राकृतिक अवस्था मे ये कूचुए अपना भोजन करते हुये सतह से गहराई तक जाते और फिर दौवारा ऊपर की ओर आते है इस दौरान ये अपना अपशिष्ट मिट्टी मे मिलाते जाते है जिसमे की कुछ ऐसे केमिकल मिट्टी मे मिल जाते है जो की फसलों के लिए आवश्यक 17 तरह के तत्वो को बनाने  मे सहायक होते है,

वैज्ञानिक परीक्षणो के आधार पर 17 तरह के तत्वों को पौधो के लिए जरूरी बताया गया है, जिनके बिना पौधे की वृद्धि-विकास तथा प्रजनन आदि क्रियाएं सम्भव नहीं हैं। इनमें से मुख्य तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश है। नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश को पौधे अधिक मात्रा में लेते हैं, इन्हें खाद-उर्वरक के रूप में देना जरूरी है। इसके अलावा कैल्सियम, मैग्नीशियम और सल्फर की आवश्यकता कम होती है अतः इन्हें गौण पोषक तत्व के रूप मे जाना जाता है इसके अलावा लोहा, तांबा, जस्ता, मैंग्नीज, बोरान, मालिब्डेनम, क्लोरीन निकिल की पौधो को कम मात्रा में जरूरत होती है ।

इस तरह जब केचुओ द्वारा एक टंकी का भोजन खतम कर दिया जाता है तब वे दीवार मे बने छिद्रों से दूसरे टैंक  मे चले जाते है और यही प्रक्रिया दोहराते हुया दूसरे से तीसरे और फिर तीसरे से चोथे टैंक मे चले जाते है, इस तरह टंकी मे केचुए छोडने के 21 से 25 दिनो मे एक टैंक की प्रक्रिया पूरी हो जाती है तब तक दूसरी टंकी का अपशिष्ट भी सड़ कर केचुओ के भोजन के लिए तैयार हो जाता है ।  



इस तरह केचुए द्वारा बनी खाद की  पहली टंकी से खाली कर लिया जाता है, और इसे छलनीनुमा यंत्र द्वारा छन कर  उपयोग किया जा सकता है ।  चार चक्रीय केचुआ खाद विधि के एक टंक खाद को तैयार होने मे 50 से 60 दिन लग जाते है । 



 इस विधि मे जैविक खाद के अलावा एक तरह का तरल प्रदार्थ भी निकलता है जो की वर्मि वॉश कहलाता है यह फसलों के लिए टॉनिक का काम करता है, यह पूरी प्रक्रिया मे नमी को बनाए रखने के लिए डाला जाने वाला अतिरिक्त पानी होता है जिसमे वे सभी तत्व उपस्थित होते है जो की खाद मे होते है ।

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