हम सभी दान देते है, इसका एक मुख्य कारण हमारी आस्था से जुड़ा होता है, और ज़्यादातर लोग धार्मिक कार्यो मे ही अपना योगदान देते है। और यह भी सत्य है की हम ज़्यादातर धन का ही दान देते है, पर क्या दान सिर्फ धन का ही दिया जा सकता है, आज हम यही जानेगे की दान की परिभाषा क्या है और यह कितने प्रकार के हो सकते है :-
दान की परिभाषा: - भारतीय कानून के अनुसार संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 122 में दान की परिभाषा कुछ इस प्रकार से दी गयी है कि, जब कोई व्यक्ति अपनी चल या अचल संपत्ति का अंतरण अपनी स्वेछा से बिना किसी प्रतिफल के अर्थात दान के बदले किसी अन्य वस्तु की मांग न करता हो, तो ऐसे अंतरण को जो की स्वेछा से किया गया है जिसमे कोई प्रतिफल का शामिल न होना "दान " कहा जायेगा।
("प्रतिफल" से मतलब यह की किसी एक वस्तू के बदले में दूसरी वस्तु का लेना।)
शिक्षा का दान करने से यह ओर बढ़ता है, परंतु यह भी उतना ही करे जितना आपको आता है, अधूरा ज्ञान कभी न बाटे ।
7) वस्त्र का दान: -
हमेशा उसी स्तर के वस्त्रों का दान करें, जिस स्तर के कपड़े आप पहनते हैं, फटे पुराने या खराब वस्त्रों का दान कभी भी न करें, वस्त्रों का दान करने से आर्थिक स्थिति हमेशा उत्तम रहती है।
ये सारे दान इंसान को पुण्य का भागी बनाते हैं. किसी भी वस्तु का दान करने से मन को सांसारिक मोह से छुटकारा मिलता है। हर तरह के लगाव को छोड़ने की शुरुआत दान से ही होती है। इंसान को दान करने में जो आनंद मिलता है, उससे इंसान श्रेष्ठ और सत्कर्मी बनाता है। अगर आप भी अपने भीतर की सच्ची खुशी को महसूस करना चाहते हैं ऊपर बताए उन सभी वस्तुओ का दान करे जो की आप के सामर्थ मे हो, और सिर्फ जरूरतमंदों को दान करिए, इससे आपको अद्भुत आत्मसुख मिलेगा।
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दान की परिभाषा: - भारतीय कानून के अनुसार संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 122 में दान की परिभाषा कुछ इस प्रकार से दी गयी है कि, जब कोई व्यक्ति अपनी चल या अचल संपत्ति का अंतरण अपनी स्वेछा से बिना किसी प्रतिफल के अर्थात दान के बदले किसी अन्य वस्तु की मांग न करता हो, तो ऐसे अंतरण को जो की स्वेछा से किया गया है जिसमे कोई प्रतिफल का शामिल न होना "दान " कहा जायेगा।
("प्रतिफल" से मतलब यह की किसी एक वस्तू के बदले में दूसरी वस्तु का लेना।)
दान की प्रकार
1) धन का दान:-
धन का दान हमेशा अपनी योग्यता के अनुसार ही देना चाहिए, और सिर्फ उसे ही देना चाहिए जिसे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत दिखे। धन स्वार्थ पेदा करने और एक दूसरे के प्रति इर्शा बढ़ाने का मुख्य कारण होता है।
2) श्रमदान: -
श्रमदान का सीधा-सा अर्थ स्वार्थ-रहित होकर जनकल्याण के कार्यों को करना होता है । इस दान से मनुष्य के मन में एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सच्ची संवेदना आती है। श्रमदान में राष्ट्रहित की भावनाओं के साथ-साथ सामाजिक और विश्व-कल्याण की भावनाओं का भी समावेश होता है । श्रमदान ही है जो किसी भी देश की आर्थिक स्थिति को तो सुधारता है साथ में राष्ट्र को पूर्ण शक्तिशाली बनाने में भी सहयोग देता है।
3) रक्तदान: -
रक्त दान महादान होता है इस दान से आप किसी जरूरतमन्द व्यक्ति को जीवन दान दे सकते है।
4) सम्पत्ति दान: -
अपनी योग्यता के अनुसार जब आप कोई सम्पत्ति दान करने की सोचते है तब इस बात का अवश्य ध्यान रखे की आप के दान का उपयोग सही व्यक्ति द्वारा सही कार्य के लिए किया जाए।
5)अन्नदान: -
अनाज का दान करने से जीवन में अन्न का अभाव नहीं होता, यह दान बिना पकाए हुए अनाज का करना चाहिए ।
6) शिक्षा का दान: -
धन का दान हमेशा अपनी योग्यता के अनुसार ही देना चाहिए, और सिर्फ उसे ही देना चाहिए जिसे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत दिखे। धन स्वार्थ पेदा करने और एक दूसरे के प्रति इर्शा बढ़ाने का मुख्य कारण होता है।
2) श्रमदान: -
श्रमदान का सीधा-सा अर्थ स्वार्थ-रहित होकर जनकल्याण के कार्यों को करना होता है । इस दान से मनुष्य के मन में एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सच्ची संवेदना आती है। श्रमदान में राष्ट्रहित की भावनाओं के साथ-साथ सामाजिक और विश्व-कल्याण की भावनाओं का भी समावेश होता है । श्रमदान ही है जो किसी भी देश की आर्थिक स्थिति को तो सुधारता है साथ में राष्ट्र को पूर्ण शक्तिशाली बनाने में भी सहयोग देता है।
3) रक्तदान: -
रक्त दान महादान होता है इस दान से आप किसी जरूरतमन्द व्यक्ति को जीवन दान दे सकते है।
4) सम्पत्ति दान: -
अपनी योग्यता के अनुसार जब आप कोई सम्पत्ति दान करने की सोचते है तब इस बात का अवश्य ध्यान रखे की आप के दान का उपयोग सही व्यक्ति द्वारा सही कार्य के लिए किया जाए।
5)अन्नदान: -
अनाज का दान करने से जीवन में अन्न का अभाव नहीं होता, यह दान बिना पकाए हुए अनाज का करना चाहिए ।
6) शिक्षा का दान: -
शिक्षा का दान करने से यह ओर बढ़ता है, परंतु यह भी उतना ही करे जितना आपको आता है, अधूरा ज्ञान कभी न बाटे ।
7) वस्त्र का दान: -
हमेशा उसी स्तर के वस्त्रों का दान करें, जिस स्तर के कपड़े आप पहनते हैं, फटे पुराने या खराब वस्त्रों का दान कभी भी न करें, वस्त्रों का दान करने से आर्थिक स्थिति हमेशा उत्तम रहती है।
ये सारे दान इंसान को पुण्य का भागी बनाते हैं. किसी भी वस्तु का दान करने से मन को सांसारिक मोह से छुटकारा मिलता है। हर तरह के लगाव को छोड़ने की शुरुआत दान से ही होती है। इंसान को दान करने में जो आनंद मिलता है, उससे इंसान श्रेष्ठ और सत्कर्मी बनाता है। अगर आप भी अपने भीतर की सच्ची खुशी को महसूस करना चाहते हैं ऊपर बताए उन सभी वस्तुओ का दान करे जो की आप के सामर्थ मे हो, और सिर्फ जरूरतमंदों को दान करिए, इससे आपको अद्भुत आत्मसुख मिलेगा।
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