Tuesday 18 February 2020

#22 वास्तु शास्त्र क्या है और घर के नक्शे मे कौन कौन सी बाते ध्यान मे रखना चाहिए ??



Basic Rules of Vastu Shastra & Helpful Tips for Home Design


अगर आप ने कोई जमीन खरीदी है तो आप सभी ने इन बातो का जरूर ध्यान दिया होगा, जैसे वहा की मिट्टी कठोर है या नरम, ग्राउंड लेवेल एक समान है या उपर नीचे है, खराब मौसम की स्थिति मे वहा जल भराव तो नहीं होगा, आप के पड़ोसी किस स्वभाव के है, वहा वास्तु के अनुसार घर बनाना संभव है या नही, और भी बहुत सी बाते है जो की आप जमीन खरीदने से पहले सुनिश्चित करते है, हम यहा मुख्य रूप से वास्तुशस्त्र के बारे मे आप को बताने वाले है।
Basic Rules of Vastu Shastra & Helpful Tips for Home Design
जब आप वास्तुशास्त्र की बात करते है तो आप को सबसे पहले दिशाओ का ज्ञान होना अति आवश्यक है। हम सभी जानते है दिशाए मुख्य रूप से 4 होती है और 4 उनकी उप-दिशाए होती है।

Direction (दिशाए ):-
1) उत्तर (North)
2) दक्षिण (South)
3) पूर्व (East)
4) पश्चिम (West)
Sub-Direction (उप-दिशाए ):-
1) उत्तर-पूर्व (North-East)
2) दक्षिण-पूर्व (South-East)
3) उत्तर-पश्चिम (North-West)
4) दक्षिण-पश्चिम (South-West)
अब हमे सबसे पहले प्लॉट के मध्य में खड़े होकर उसकी सही दिशाओ का पता लगाना होगा। इस काम के लिए आप एक दिशा सूचक यंत्र (कम्पास ) का उपयोग कर सकते है।


इन्ही दिशाओ और उपदिशाओं के अनुसार हमारे जीवन के निम्न लिखित ये चार तत्व की उपस्थिति वास्तुशास्त्र में मानी जाती है:-

Element (तत्व ):-

1)जल (Water)
2)अग्नि (Fire)
3)वायु (Air)
4)पृथ्वी (Earth)



ये तत्व दिशा अनुसार इस प्रकार उपस्थित रहते है:-
1)उत्तर-पूर्व(North-East)=जल (Water)=ईशान कोण (Ishan Kon)
2)दक्षिण-पूर्व (South-East)=अग्नि (Fire)=आग्नेय कोण (Aagneya Kon)
3)उत्तर-पश्चिम (North-West)=वायु (Air)=वायव्य कोण (Vayvya Kon)
4) दक्षिण-पश्चिम (South-West)=पृथ्वी (Earth)=नैश्रत्या कोण (Neshrtya Kon)






इस तरह आपको तत्वों से यह तो समझ आ ही गया होगा की अब आप के घर का कौन सा हिस्सा कौन सी दिशा में बनना वास्तु के अनुसार सही होगा,

जल का स्थान :-
यह स्थान ईशांत कोण कहलाता है इसे देवताओ का स्थान भी कहते है , यहां आप कुँए, बोरिंग, भूमिगत जल स्रोत, बगीचा, बालकनी, मन्दिर आदि बना सकते है। 

अग्नि का स्थान :-
यह स्थान आग्नेय कोण कहलाता है, यह ऊर्जा का प्रतिक होता है इसलिए इस स्थान पर आप किचिन, इलेक्ट्रिकल रूम, जनरेटर रूम, आदि बना सकते है।

वायु का स्थान :-
यह स्थान वायव्य कोण कहलाता है, इस स्थान को आप जितना खुला रखे उतना अच्छा है, यहां आप बैडरूम, टॉयलेट,पार्किंग, डाइनिंग, आदि बना सकते है। 

पृथ्वी का स्थान :-यह स्थान नैश्रत्या कोण कहलाता है, यहां अगर मैं भू-लोक की बात करू तो आप को कुछ समानता जरूर नजर आएगी, पृथ्वी के निचे का स्थान भू-लोक कहलाता है। और हिन्दू मान्यता के अनुसार यहां राक्षसो का निवास माना जाता है, इसलिए इस स्थान पर कोई भी भूमिगत संरचना जैसे , बोरिंग, सेपटिक टैंक, अंडरग्राउंड टैंक, स्वीनिंगपूल न बनाये। यहाँ आप बैडरूम, सीढ़िया, ओवरहेड टैंक बना सकते है।

अब यह भी सत्य है की आप सभी को प्लॉट आप की पसंद के अनुसार मिल जाये, यह भी सम्भब नहीं है, और घर १००% वास्तु के अनुसार बन जाये यह भी बहुत मुश्किल है, तब आपको सिर्फ उन संरचनाओं को वास्तु के अनुसार बनाना चाहिए जिन्हे की आप दुवारा नहीं बनाना चाहेंगे। जैसे:-
Basic Rules of Vastu Shastra & Helpful Tips for Home Design



इस तरह आप सभी वास्तु को ध्यान में रखते हुए घर बनाये और जो स्थान वास्तु के अनुसार नहीं बन सकता उसका वास्तु दोष दूर कराये।

अब हम घर के अंदर के उन स्थानों और क्रियाओ की बात करेंगे जिनका वास्तु के अनुसार होना भी महत्वपूर्ण माना जाता है, जैसे :-

1) सोने की दिशा:- आप का सिर हमेशा दक्षिण मे होना चाहिए और पैर उत्तर मे होना चाहिए।
कारण:- हमारे शरीर का पॉज़िटिव “सिर” और नेगेटिव “पैर” होता है, और पृथ्वी का “उत्तर दिशा” पॉज़िटिव एवम “दक्षिण दिशा” नेगेटिव होता है, और दो पॉज़िटिव यदि साथ आए तो प्रतिकर्षण होना स्वभाविक है, जिसका असर शरीर पर पड़ता है।


2) बेठने की दिशा:- आप का चेहरा उत्तर या पूर्व की और होना चाहिए। 
कारण:- उत्तर और पूर्व की दिशा मे ज्यादा देर तक बेठने से ज्यादा (+)पॉज़िटिव एनर्जि मिलती है।


3) खाना बनाने की दिशा:- आप का चेहरा उत्तर या पूर्व की और होना चाहिए। 
कारण:- उत्तर और पूर्व से ज्यादा (+)पॉज़िटिव एनर्जि मिलने से किटाणु वहा कम मात्रा मे पनपते है और खाना पौष्टिक बनता है।


4) पूजा करने की दिशा:- आप का चेहरा हमेशा उत्तर की ओर होना और भगवान का चेहरा पूर्व की और होना चाहिए। 
कारण:- उत्तर दिशा सभी देवताओ का निवास होता है और सूर्य की पहली किरण भगवान पर आने से घर मे पॉज़िटिव एनर्जि रहती है।

5) पानी के ढलान की दिशा:- पानी का बहाव हमेशा पश्चिम से पूर्व या दक्षिण से उत्तर की और होना चाहिए। 
कारण:- घर मे आने वाली नेगेटिव एनर्जि, ढलान के कारण घर से बाहर निकल जाती है

6 ) घर में प्रवेश की दिशा:- घर के प्रवेश द्वार के लिए पूर्व सबसे शुभ दिशा मानी जाती है।
कारण:- घर में प्रवेश के साथ पॉज़िटिव एनर्जि का भी प्रवेश होता है और बाहर जाते समय नेगेटिव एनर्जी बाहर निकल जाती है।

इन सब बातो के साथ, उम्मीद करता हूँ आपको वास्तु के अनुसार घर का नक्शा बनवाने में आसानी होगी। 

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