साल 2020 की शुरुआत से कोरोना नामक वाइरस ने पूरी पृथ्वि के सभी देशो को जकड़ रखा है, मानव जाति के पास आधुनिक विज्ञान होते हुये भी, अभी तक इसका इलाज़ नहीं मिल सका है, इसने आज मानव जाति को अपने अपने घरो मे कैद कर के रख दिया है, क्योकि यह एक इंसान से दूसरे इंसान मे फेलने वाला वाइरस है, और इससे बचाव करके ही मानव अपने आप को सुरक्षित रख सकता है, इसी कदम मे सभी देशो की सरकारो ने भी देश मे सामान्य नागरिक के घर से बाहर गुमने पर पूर्णत प्रतिबंध लगा दिया है, अब समस्या यह आ रही है की बचाव करने के लिए हम सभी को घर मे रहना जरूरी है और वह भी लंबे समय तक, ऐसे समय मे होटलो पर भोजन के लिए आश्रित लोगो को अपने पूर्वजो की कही बाते याद आ रही है।
हमारे बुजुर्गो का कहना था कि प्रकृति ने हर जीव के जीने की व्यवस्था की है, जैसे एक चीटी अपना आहार 100 मीटर घूमकर पा लेती है, एक जानवर 2 से 3 किलोमीटर घूमकर अपना भोजन पा लेता है, एक पक्षी भी सुबह से शाम तक अपना भोजन पा कर अपने घोसले मे वापस आ जाता है , उसी प्रकार मनुष्य के जीने के लिए भी प्रकृति ने एक दायरा बनाया है, अगर कोई उस दायरे से बाहर जाता है तो या तो वह किसी ओर के जीने का हक छिनना चाहता है या वह किसी ओर की गुलामी करना चाहता है। इसलिए हमारे बुजुर्गो द्वारा जीने के कुछ नियम (परंपराए ) बनाए गए थे, आज इस कोरोना वाइरस की बीमारी मे उसकी अहमियत महसूस हो रही है,
जैसे:-
- बड़ो का नमस्कार से अभिवादन करना ।
- घर मे गुसने से पहले हाथ पैर धोना ।
- साधारण पहनावा पहनना ।
- उपवास रखना ।
- जमीन पर बैठकर हाथो से खाना खाना ।
- संयुक्त परिवार मे रहना।
- मिल जुलकर त्योहार मनाना ।
- कुल मनुष्यो कि जरूरत अनुसार एक गाँव का क्षेत्र निर्धारित करना, और उसी मे रहना ।
- साल भर के अनुसार खाने पीने के समान का संग्रह रखना ।
- स्वः निर्मित वस्तुओ का उपयोग करना ।
- ज्ञान और कला को महत्व देना और उनसे जुड़े लोगो का भरण पोषण करना ।
- वस्तु के बदले अन्य वस्तु देकर क्रय-विक्रय करना ।
- मानव की सुरक्षा के लिए एक सुरक्षा चक्र बनाना, जिसमे क्रमश परिवार द्वारा, फिर कुटुम, फिर समाज, फिर गाँव, फिर राज्य द्वारा जिम्मेदरी लेना ।
आज ये सब बाते इसलिए याद आ रही है क्योकि कोरोना की बीमारी के कारण हम सभी को घर मे सीमित संसाधनो के साथ जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है, और ऐसा पहले के जमाने मे भी होता था परंतु ऐसी स्थिति तेज़ बारिश के कारण उत्पन होती है, जिस कारण लोगो का घर से बाहर निकालना मुस्किल हो जाता था, उसके बाद भी वे सभी अपना जीवन खुशी खुशी व्यतीत कर पाते थे। अब हमे अपनी परम्पराओ को पुनः अपनाने कि जरूरत है ।
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